उत्तर प्रदेश: लखनऊ का AQI 174… बोली यूपी सरकार, कहा- इस वजह से फैल रहा भ्रम

उत्तर प्रदेश: लखनऊ का AQI 174… बोली यूपी सरकार, कहा- इस वजह से फैल रहा भ्रम

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारत और अफ्रीका के बीच होने वाला चौथा T20 मैच इकाना स्टेडियम में घने कोहरे की वजह से कम दृश्यता के कारण रद्द कर दिया गया. इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने बुधवार को बताया कि लखनऊ का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 174 है, जो मध्यम स्तर की वायु गुणवत्ता को दर्शाता है. सरकार ने
लोगों को सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफॉर्म पर निजी वायु गुणवत्ता जांच एप्लिकेशन द्वारा प्रसारित भ्रामक आंकड़ों पर भरोसा न करने को कहा है.

सरकार का कहना है कि लखनऊ का AQI (वायु गुणवत्ता इंडेक्स) 174 है जो हवा की मॉडरेट क्वालिटी को प्रमाणित करता है. हालांकि सोशल मीडिया और अन्य प्लेटफार्म पर AQI से संबंधित भ्रामक आंकड़े प्रचारित और प्रसारित किए जा रहे हैं, जो वायु गुणवत्ता बताने वाले निजी एप से लिए गए हैं.

विदेशी प्लेटफॉर्म US-EPA मानकों का इस्तेमाल करते हैं

ज्यादातर विदेशी प्लेटफॉर्म US-EPA मानकों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि भारत में National Air Quality Index (NAQI) का पालन किया जाता है. दोनों के मापदंड अलग-अलग हैं. साथ ही सरकारी स्टेशन (जैसे लालबाग, तालकटोरा, अलीगंज) प्रमाणित और कैलिब्रेटेड उपकरणों का उपयोग करते हैं. निजी संस्थाएं अक्सर सैटेलाइट डेटा या अनकैलिब्रेटेड सेंसर का प्रयोग करती हैं, जिनमें गलती की संभावना अधिक होती है.

सीपीसीबी का डेटा 24 घंटे के औसत पर आधारित

सीपीसीबी द्वारा जारी AQI आंकड़े पिछले 24 घंटों के औसत वैज्ञानिक मूल्यांकन पर आधारित होते हैं, जिससे शहर की वास्तविक और समग्र वायु गुणवत्ता की स्थिति सामने आती है. इसके विपरीत, कई निजी ऐप्स क्षणिक और स्थानीय धूल और कणों को दिखाते हैं, जो किसी एक चौराहे, ट्रैफिक जाम या सीमित गतिविधि के कारण हो सकते हैं और पूरे शहर की स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते.

तकनीकी अंतर से पैदा होता है भ्रम

वायु गुणवत्ता मापने की तकनीक और मानकों में अंतर के कारण निजी ऐप्स पर दिखाई देने वाले आंकड़े अक्सर भ्रामक हो जाते हैं. सीपीसीबी का मॉडल भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप विकसित किया गया है, जबकि अधिकतर निजी ऐप विदेशी परिस्थितियों पर आधारित होते हैं, जो भारत की भौगोलिक, मौसमी और पर्यावरणीय स्थितियों को सही तरीके से आंकने में सक्षम नहीं हैं.

धूल और धुएं में अंतर नहीं कर पाते निजी ऐप्स

विशेषज्ञों के अनुसार कई निजी ऐप धूल कण और धुएं के बीच अंतर नहीं कर पाते. भारतीय शहरों में धूल की मात्रा स्वाभाविक रूप से अधिक होती है, लेकिन विदेशी मॉडल इसे सीधे प्रदूषण मान लेते हैं. इसी कारण AQI को वास्तविकता से अधिक दिखाया जाता है और अनावश्यक डर का माहौल बनता है.

एक ही शहर के लिए अलग-अलग आंकड़े

यह भी सामने आया है कि निजी ऐप्स एक ही शहर के अलग अलग इलाकों के लिए अलग अलग AQI दिखाते हैं, जो समग्र शहरी स्थिति नहीं बताते. ऐसे आंकड़े न तो प्रमाणिक होते हैं और न ही किसी आधिकारिक एजेंसी द्वारा सत्यापित, जिससे आमजन में भ्रम और चिंता फैलती है.

भ्रामक आंकड़ों से फैलाई जा रही चिंता निराधार

प्रदेश सरकार का कहना है कि निजी ऐप के आधार पर फैलाया जा रहा डर तथ्यहीन और निराधार है. लखनऊ की वायु गुणवत्ता मध्यम श्रेणी में है, स्थिति नियंत्रण में है और घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है. नागरिकों से अनुरोध है कि केवल सीपीसीबी और सरकारी स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर ही भरोसा करें.

अखिलेश यादव का योगी सरकार पर हमला

इधर मैच रद्द होने पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नाराजगी जाहिर की है. उन्होंनेसोशल मीडिया एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा कि दिल्ली का प्रदूषण अब लखनऊ तक पहुंच गया है. इसीलिए लखनऊ में आयोजित होने वाला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच नहीं हो पा रहा है. दरअसल इसकी वजह कोहरा या फ़ॉग नहीं, स्मॉग है.

सपा प्रमुख ने लिखा- हमने जो पार्क लखनऊ की शुद्ध हवा के लिए बनवाए थे, बीजेपी सरकार वहां भी इंवेटबाजी करवाकर उन्हें बर्बाद करना चाहती है. भाजपाई न इंसान के सगे हैं, न पर्यावरण के. मुंह ढक लीजिए कि आप लखनऊ में हैं. अखिलेश ने अपनी पोस्ट में दो तस्वीरें भी शेयर की.

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