रेशम की खेती से बदल रही कानपुर के किसानों की तकदीर, हो रही अच्छी आमदनी

दशकों पहले देश के एक शहर में मिल की मशीनों की आवाज दूर तक गूंजती थी. रोज शाम को हजारों मजदूर अपने घरों को रवाना होते थे. इस शहर को पूरब का मैनचेस्टर यानी कानपुर कहा जाता था. गुजरते समय के साथ यहां की मिलें बंद हो गई लेकिन कभी रेशम उत्पादन से अछूता रहा कानपुर जिला आज उत्तर भारत के उभरते सिल्क हब के रूप में पहचान बना रहा है. घाटमपुर, पतारा, भीतरगांव और बिल्हौर क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में ऐरी और मलबरी रेशम की चमक किसानों की जिंदगी रौशन कर रही है. पारंपरिक खेती के साथ-साथ रेशम कीटपालन अब अतिरिक्त आय का सबसे भरोसेमंद जरिया बन गया है.

अरण्डी की पत्तियों पर पल रहा ऐरी रेशम सबसे लोकप्रिय है. एक किसान प्रति चक्र 100-150 डीएफएल (रोगमुक्त अंडे) डालकर 50-60 किलो कोकून तैयार कर लेता है. व्यावसायिक कोकून 100-110 रुपये किलो तथा बीज कोकून 300 रुपये किलो तक बिक रहा है. गुजरात, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और बनारस के व्यापारी गांव पहुंचकर सीधे खरीदारी कर रहे हैं, जिससे किसानों को बाजार की कोई चिंता नहीं रहती. सुजानपुर के किसान राजेश कुमार कहते हैं, हर चक्र में नकद आय हो जाती है. खेती की अनिश्चितता काफी कम हो गई. कोटरा मकरंदपुर के सुधीर बताते हैं कि मिर्जापुर व असम में मिले प्रशिक्षण के बाद उत्पादन और गुणवत्ता दोनों बढ़ गए.

‘वाइट गोल्ड’ से आमदनी ज्यादा

वहीं बिल्हौर के राजकीय रेशम फार्मों से जुड़े 40-50 किसान शहतूत (मलबरी) रेशम उत्पादन कर रहे हैं. चमकदार मलबरी रेशम को वाइट गोल्ड कहा जाता है और इसकी कीमत भी अधिक मिलती है. ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से परिवारों की कुल आमदनी में उल्लेखनीय इजाफा हुआ है. रेशम विभाग के सहायक निदेशक एस. के. रावत ने बताया कि जिले में लगभग 600 प्रगतिशील किसान इस कार्य से जुड़े हैं. वर्ष 2024-25 में 389.6 कुंतल रेशम कोकून का उत्पादन हुआ. अरण्डी बीज से 35-40 हजार तथा कोकून से 20-25 हजार रुपये प्रति एकड़ अतिरिक्त आय हो रही है. कुल मिलाकर रेशम कीटपालन से किसानों को 60-65 हजार रुपये प्रति एकड़ सालाना अतिरिक्त कमाई हो रही है.

कई जिलों के लिए बना प्रेरणा

जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, शासन की प्राथमिकता है कि किसानों को स्थिर व सुरक्षित आय के नए रास्ते मिलें. प्रशिक्षण, बेहतर तकनीक और तय बाजार की त्रिवेणी से रेशम कीटपालन जिले में सफल मॉडल बन गया है. इसे और गांवों तक विस्तार देने का लक्ष्य है. खेतों में अरण्डी-शहतूत के बीच पनपता यह सफेद सोना कानपुर के ग्रामीण परिदृश्य को नई चमक और नई उम्मीद दे रहा है. पारंपरिक कृषि के साथ जुड़ा यह सतत आजीविका मॉडल उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों के लिए भी प्रेरणा बन सकता है.

Enjoy this blog? Please spread the word :)

Exit mobile version