हॉस्पिटल में हुई महिला की मौत, परिवार के पास एंबुलेंस के पैसे भी नहीं… जबलपुर में कांस्टेबल ने दिखाई दरियादिली

जबलपुर में घटी एक घटना ने गरीबी के कड़वे सच को उजागर कर दिया. पांच मासूम बेटियों के सिर से मां का साया उठ गया लेकिन आर्थिक तंगी इतनी थी कि वे अपनी मां का शव घर तक ले जाने के लिए एंबुलेंस का खर्च भी नहीं उठा सकीं. यह दर्द भरी स्थिति देख किसी का भी दिल पिघल सकता है. लेकिन हजारों की भीड़ में कोई भी आगे नहीं आया, न ही सरकार की कोई योजना, लेकिन ऐसी विषम परिस्थिति में पुलिस एक छोटा सा कर्मचारी सामने आया. जिसने एंबुलेंस की व्यवस्था कर न सिर्फ परिवार का बोझ हल्का किया बल्कि यह भी साबित किया कि इंसानियत आज भी जिंदा है.

दरअसल जबलपुर शहर में मानवता का ऐसा उदाहरण सामने आया जिसने हर किसी का दिल छू लिया. रांझी थाना क्षेत्र की रहने वाली गीता वंशकार ने मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया. परिवार पहले से ही बदहाली और आर्थिक संकट से जूझ रहा था. इतने भी पैसे नहीं थे कि वे अपनी मां के शव को एंबुलेंस में घर तक ले जा सकें. मां की मौत के बाद बच्चियां और उनका पिता किसी उम्मीद के सहारे अस्पताल के वार्ड में बैठे रहे.

बेसहारा बैठा था परिवार

परिजनों के चेहरे पर मातम और बेबसी साफ झलक रही थी. आस-पास खड़े लोग भी उनकी हालत देख रहे थे लेकिन कोई भी मदद के लिए आगे नही आया. बेटियों की रुलाई, पिता की टूटी हुई हिम्मत और उनके सामने पड़ी मां की निर्जीव देह बेहद पीड़ादायक थी.

इसी बीच मेडिकल कैंपस में बनी पुलिस की प्रीपेड एंबुलेंस सेवा में मौजूद आरक्षक संजय सनोडिया के पास बेटियां गईं और कांपती आवाज़ में अपनी समस्या बताई. उन्होंने कहा कि उनकी मां अब दुनिया में नहीं है, और वे इतने असहाय हैं कि अंतिम यात्रा के लिए एंबुलेंस भी नहीं ले पा रहे.

भावुक हुए आरक्षक

यह सुनते ही आरक्षक संजय के मन में करुणा उमड़ पड़ी. बिना एक पल गंवाए उन्होंने अपने स्तर पर पूरा प्रबंध किया. मानवता को सर्वोपरि मानते हुए आरक्षक संजय सनोडिया ने निःशुल्क एंबुलेंस की व्यवस्था कराई ताकि बेटियां अपनी मां के पार्थिव शरीर को सम्मानपूर्वक घर ले जा सकें. उन्होंने न सिर्फ एंबुलेंस उपलब्ध कराई बल्कि पूरी प्रक्रिया में परिवार के साथ खड़े रहे.

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