
भारत देश को आस्था और अध्यात्म की भूमि कहा जाता है जहां हर भक्त अपने तरीके से भगवान और प्रकृति की उपासना करता है. लेकिन मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले से जो तस्वीर सामने आई है वह भक्ति और तपस्या की पराकाष्ठा को दर्शाता है. आज के युग में जब लोग सुविधा और सहजता के आदी हो चुके हैं वहीं एक संत है धर्मपुरी महाराज, जिन्होंने मां नर्मदा की परिक्रमा करने का ऐसा संकल्प लिया है जो हर किसी को अचंभित कर दे.
धर्मपुरी महाराज नीचे सिर और ऊपर पैर, यानी हाथों के बल चलकर मां नर्मदा की परिक्रमा कर रहे हैं. आस्था का यह रूप जितना अनोखा है उतना ही कठिन भी. आमतौर पर भक्त नर्मदा परिक्रमा पैदल, दंडवत या वाहनों से करते हैं लेकिन धर्मपुरी महाराज ने इसे साधना और तपस्या का स्वरूप दे दिया है. उनका यह अनोखा संकल्प अमरकंटक से शुरू हुआ है जहां नर्मदा का उद्गम होता है और इसे पूरा करने में उन्हें तीन साल, तीन महीने और तेरह दिन लगेंगे. इस दौरान वे लगभग साढ़े तीन हजार किलोमीटर की दूरी तय करेंगे.
भक्ति देख आश्चर्य में लोग
धर्मपुरी महाराज का कहना है कि यह सिर्फ एक यात्रा नहीं बल्कि मां नर्मदा के प्रति उनका पूर्ण समर्पण और तप है. वे कहते हैं कि शरीर की सीमाएं चाहे जो हों सच्ची श्रद्धा और विश्वास से हर कठिनाई को पार किया जा सकता है. उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि जब मन में भक्ति की ज्योति जलती है तब असंभव भी संभव हो जाता है. स्थानीय ग्रामीण भी इस अनोखी परिक्रमा को देखकर श्रद्धा से भर जाते हैं. डिंडोरी के रहने वाले ग्रामीण जगदेव सिंह का कहना है कि हमने अपने जीवन में ऐसा नजारा और मां नर्मदा के प्रति ऐसी आस्था कभी नहीं देखी. महाराज जी के संकल्प ने पूरे गांव में भक्ति का माहौल बना दिया है. वहीं माखन धुर्वे का कहना है मां नर्मदा की कृपा से ही कोई ऐसा कर सकता है. यह सिर्फ शारीरिक नहीं बल्कि आत्मिक साधना है.
भक्ति में कठिन तपस्या
धर्मपुरी महाराज का यह प्रयास न केवल एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि आस्था, संयम और आत्मबल का अद्भुत उदाहरण भी है. हाथों के बल चलते हुए वे हर दिन सैकड़ों लोगों को यह संदेश दे रहे हैं कि भक्ति का कोई रूप छोटा या बड़ा नहीं होता. मायने रखता है तो बस समर्पण का भाव. डिंडोरी की यह तस्वीर आज पूरे भारत के लिए प्रेरणा है कि जब तक मन में विश्वास और मां नर्मदा जैसी दिव्य शक्ति का आशीर्वाद है तब तक हर कठिन राह भी साधक के लिए तपोभूमि बन जाती है. दुनिया में भगवान के भक्त तो बहुत हैं लेकिन धर्मपुरी महाराज जैसे विरले ही होते हैं जो अपनी भक्ति को कठिनतम तपस्या में बदल देते हैं.