कांग्रेस ने 27 साल बाद सीताराम केसरी को किया याद… बिहार चुनाव पर इसका क्या होगा असर?

कांग्रेस पार्टी अपने पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज नई दिल्ली स्थित 24 अकबर रोड पर सुबह 10 बजे से पुष्पांजलि अर्पित करेगी. पार्टी के वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और समर्थक इस मौके पर एकत्र होकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने वाले हैं. स्वर्गीय केसरी ने कांग्रेस पार्टी को मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनके योगदान को पार्टी आज फिर से याद कर रही है.

हालांकि उन्हें 1998 में बेआबरू कर अध्यक्ष पद से हटाया गया था और सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था. ऐसे में 27 साल बाद कांग्रेस पार्टी को उनकी याद आना बिहार चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है. बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच कांग्रेस ने स्वर्गीय सीताराम केसरी की 25वीं पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित करने का फैसला किया है. करीब 27 साल बाद ‘चचा केसरी’ को याद करने का यह कदम राजद के मुस्लिम-यादव समीकरण के मुकाबले दलित और ईबीसी वोट बैंक को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि लंबे समय तक पार्टी के कोषाध्यक्ष और अध्यक्ष रहे केसरी बिहार की इसी वोट बेस से आते थे.

आजादी की लड़ाई से कांग्रेस के साथ थे केसरी

सीताराम केसरी का जन्म 1919 में पटना जिले के दानापुर में एक ओबीसी बनिया परिवार में हुआ था. मात्र 13 साल की उम्र से सक्रिय हो चुके केसरी को 1930 से 1942 के बीच कई बार गिरफ्तार किया गया. वे बिहार कांग्रेस के ‘यंग टर्क्स’ समूह का हिस्सा थे, जिसमें बिंदेश्वरी दुबे, भगवत झा आजाद, चंद्रशेखर सिंह, सत्येंद्र नारायण सिन्हा, केदार पांडेय और अब्दुल गफूर जैसे भविष्य के बिहार के मुख्यमंत्री शामिल थे.

इस समूह ने बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने और स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने में खास भूमिका निभाई है. स्वतंत्रता के बाद केसरी ने बिहार कांग्रेस को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. 1967 में वे कटिहार लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुने गए. इसके बाद 1971 से 2000 तक वे पांच बार राज्यसभा सदस्य रहे, जो बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए चुने गए. 1980 में वे ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के कोषाध्यक्ष बने, पद जो उन्होंने एक दशक से अधिक समय तक संभाला.

बिहार चुनाव पर पड़ सकता है असर

कांग्रेस के इस कदम से बिहार चुनाव पर असर पड़ने की उम्मीद है क्योंकि सीताराम केसरी को ओबीसी समुदाय में सम्मान की निगाहों से देखा जाता है. अभी तक MY समीकरण पर निर्भर महागठबंधन दूसरे समुदाय को अपने साथ लाने के लिए मेहनत कर रहा है.

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