मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले से एक विचित्र लेकिन बेहद मार्मिक तस्वीर सामने आई है, जो राज्य में गहराते खाद संकट की सच्चाई को बयां करती है. हालात ऐसे हो गए हैं कि अब किसान खुद लाइन में खड़े नहीं होते, बल्कि अपने आधार कार्ड, जमीन के कागज़ और यहां तक कि पत्थरों पर नाम लिखकर उन्हें ही लाइन में लगा देते हैं.
हर सुबह सूरज उगने से पहले ही खाद वितरण केंद्रों के बाहर किसानों की भीड़ जुट जाती है. भीड़ में इंसानों से ज़्यादा कागज़ नजर आते हैं. किसानों ने अपनी जगह पत्थरों पर नाम लिखकर उन्हें कतार में जमा दिया है ताकि लाइन में उनका नंबर न छूटे और पहचान बनी रहे. ये तस्वीरें अब सोशल मीडिया से होते हुए पूरे सिस्टम पर सवाल उठा रही हैं?
असल में आगर मालवा जिले खाद्य वितरण केंद्र से हर दिन सिर्फ 40 किसानों को ही कूपन दिए जा रहे हैं. इन कूपन के आधार पर ही बाद में खाद दी जाएगी. जैसे ही कूपन बांटने वाला कर्मचारी आता है, वहां भगदड़ जैसी स्थिति बन जाती है. किसान आपस में धक्का-मुक्की करते हैं, नाराज़ होते हैं और निराश होकर लौटते हैं.
खाद के लिए महिलाएं भी लाइन में
महिलाएं भी इस संकट से अछूती नहीं हैं. सुबह 6-7 बजे से ही वे घर के काम छोड़कर लाइन में लग जाती हैं और अपने दस्तावेज़ या पत्थर लाइन में रख देती हैं. ये सिर्फ कागज़ नहीं, बल्कि किसानों की उम्मीदें हैं जो खुले आसमान के नीचे, सड़कों पर बिछी पड़ी हैं. यह कहानी सिर्फ आगर मालवा की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की उस जमीनी हकीकत की तस्वीर है, जहां किसान को अपनी पहचान भी ज़मीन पर रखनी पड़ रही है.
‘खेत तक सुविधाओं’ की सच्चाई
सरकार भले ही “खेत तक सुविधाएं” पहुंचाने की बात करे लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि किसान अपनी मूल पहचान को भी सड़क पर रखकर खाद के इंतजार में बैठा है. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या ये लाइन कभी खत्म होगी? या फिर किसान यूं ही व्यवस्था से उम्मीद लगाए बैठे रहेंगे?