
अमेरिका अब H-1B वीजा के लिए हर साल करीब 88 लाख रुपए (एक लाख डॉलर) एप्लिकेशन फीस वसूलेगा. इस फीस बढ़ोत्तरी पर आईआईटी-मद्रास के डायरेक्टर, कामकोटि वीजीनाथन ने कहा कि हमें इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का धन्यवाद करना चाहिए, मैं इसे एक आशीर्वाद के रूप में देखता हूं और हमें इसका पूरा लाभ उठाना चाहिए.
बता दें कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को व्हाइट हाउस में साइन किए. पहले H-1B वीजा के लिए औसतन 6 लाख रुपए लगते थे. ये तीन साल के लिए मान्य होता था. जिसके बाद इसे फीस देकर फिर तीन साल के लिए रिन्यू कराया जा सकता था. वहीं अब हर साल 88 लाख रुपए के हिसाब से देखें तो अब अमेरिका में H-1B वीजा के लिए 6 साल में करीब 5.28 करोड़ रुपए देने होंगे.
अमेरिका जाने का क्रेज खत्म
दरअसल एच-1बी वीजा फीस वृद्धि के प्रभाव पर बात करते हुए कामकोटि वीजीनाथन ने कहा कि इसका दोहरा प्रभाव है- एक, जो छात्र यहां से वहां काम करने की इच्छा लेकर जाते हैं, वे शायद अब वहां न जाएं, और आईआईटी-मद्रास के डायरेक्टर होने के नाते, मुझे खुशी है कि वे भारत में ही रहेंगे. मेरा मानना है कि एक देश के रूप में हमारे पास यहां शोध करने के बेहतरीन अवसर हैं. यही वह समय है जब जो छात्र अमेरिका जाना चाहते हैं, वे यहां रहकर योगदान दे सकते हैं. पिछले 5 सालों में, आईआईटी-मद्रास में, हमारी केवल 5% आबादी ही भारत से बाहर रही है. यहां अमेरिका जाने का क्रेज खत्म हो गया है.
#WATCH | Chennai | On impact H-1B visa fee hike, Director, IIT-Madras, Kamakoti Veezhinathan says, “I see this as a blessing in disguise and we must thank President Trump for it. We must take full advantage of this…”
“The impact is two-fold -one, the students who go from here pic.twitter.com/NhObnwVzFI
— ANI (@ANI) September 22, 2025
स्थानीय भर्तियों में तेजी आएगीः रिपोर्ट
अमेरिका में विदेशी पेशेवरों के लिए नए एच-1बी वीजा आवेदनों पर एक लाख डॉलर का शुल्क लगाए जाने से घरेलू सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कंपनियों के कारोबारी ढांचे पर गहरा असर पड़ सकता है. इस व्यवस्था से कंपनियां नए आवेदनों से परहेज करने के साथ विदेशी आपूर्ति या स्थानीय भर्तियों पर जोर दे सकती हैं.
वित्तीय परामर्शदाता मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2027 से इस फैसले के लागू होने पर अगर कोई कंपनी 5,000 एच-1बी वीजा के लिए आवेदन करेगी तो उस पर सिर्फ फीस का ही बोझ 50 करोड़ डॉलर हो जाएगा.
नए एच-1बी आवेदनों से दूरी बनाएंगी आईटी कंपनियां
सलाहकार फर्म ने कहा कि इस फीस बोझ को देखते हुए संभव है कि भारतीय आईटी कंपनियां नए एच-1बी आवेदनों से दूरी बनाएंगी. ऐसे में संभावना है कि भारतीय आईटी कंपनियां एच-1बी वीजा के लिए नए आवेदन करने से परहेज करेंगी और इसकी जगह पर वे ऑफशोर आपूर्ति बढ़ाने या स्थानीय भर्तियां करने पर जोर देंगी. ऑफशोर आपूर्ति का मतलब भारत या कम लागत वाले किसी अन्य देश में मौजूद पेशेवरों के जरिए अमेरिकी कंपनियों को सेवाओं की आपूर्ति करने से है.
अमेरिकी कारोबार से राजस्व घटेगा
हालांकि, एच-1बी वीजा के नए आवेदन कम हो जाते हैं या कंपनियां उनसे दूरी बना लेती हैं तो ऑनसाइट (अमेरिका में) काम से होने वाली आय में गिरावट आ सकती है. लेकिन इसका एक असर यह भी होगा कि कंपनियों की ऑनसाइट कर्मचारियों पर आने वाली लागत भी कम हो जाएगी. इस स्थिति में भले ही भारतीय आईटी कंपनियों का अमेरिकी कारोबार से राजस्व घटेगा लेकिन ऑनसाइट लागत भी कम हो जाने से उनका परिचालन मार्जिन बेहतर हो सकता है.